Friday 25 February 2011

 माँ जैसी रात  

इतना बड़ा आँचल है उसका 
कि उसकी छाया में
सोती है सारी दुनिया
थकी पलकों में
सजाकर रंगीन सपने
थपकियाँ देती है ,
सहलाती है अपने हर बच्चे को
चाहे वह फुटपाथ की
कठोर ज़मीन पर सोया हो
या किसी नाले क़ी दुर्गन्धयुक्त
गीली मिट्टी के किनारे
समेटकर अपने सीने में
सबके जिस्म का दर्द
चली जाती है चुपचाप
कि बच्चे सुबह उठें तो
तैयार रहें 
एक नई जंग के लिए 
सोचती हूँ 
नहीं होती अगर 
माँ जैसी रात 
हम भटकते ही रहते ख्वाहिशों के कंटीले जंगल में 
कौन रखता 
जिन्दगी की तपिश  से
झुलसते माथे पर
अपना हिमालय जैसा हाथ ?

जनरल डायर की वापसी
वह लौटा है भारत
इस बार कई नए रूपों में
जलियाँवालाबाग का लहू 
भिगोने लगा है 
असम और महाराष्ट्र को 
खामोश हैं उधम सिंह के बच्चे 
अरबों लोगों का खून 
नहीं खौलता उस तरह 
जैसे तीस करोड़ का खौलता था
आज़ादी के बाद भी
विस्थापित हैं अपने ही देश में
गुनाह सिर्फ इतना
कि अपना क्यों समझा
पूरे हिंदुस्तान को
बिना इसकी जाँच किये
कि जाति का रंग
वहाँ की मिट्टी से मेल खता है या नहीं
तिलकधारी शिव की आँखों से
डरने लगा है इतिहास भी
नहीं दर्ज करता विवादास्पद घटनाएँ
कहीं नाराज त्रिपुरारी
तांडव न करने लगें
तुलसी को अप्रासंगिक लगती है रामायण
क्योंकि राम और हनुमान ने
बनाली हैं  अलग पार्टियाँ
गांधीगिरी शब्द
गाली की तरह इस्तेमाल होता है
गाँधी के देश में
चर्चित है गुजरात आज भी
पर गाँधी नहीं गोधरा के लिए
सिंगुर और नंदीग्राम के
किसानों के आंसुओं से
नहीं भींगता कामरेड का कोट
अब डायर गोलियों की तरह मुस्कुराता है
यूनियन जैक के सुर में तिरंगा गुनगुनाता है |

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