Monday 7 November 2011

तेज लहरों पर लिखी मेरी इबारत

तेज लहरों पर लिखी मेरी गज़ल
अब नहीं तुमसे मिटाई जाएगी
रेत मेरी ज़िन्दगी की ऐ हवा !
अब नहीं तुमसे उड़ाई जाएगी |
गीत हैं मेरे नहीं कोई शग़ल
चोट अंगारों की है मेरी गज़ल
हर किसी से ये ना  गाई जाएगी |
हैं छुपी इसमें कई परछाइयाँ
और कुछ मासूम सी तन्हाइयाँ
जो नहीं तुमसे रुलाई जाएँगी |
दीप बनकर दर्द जब जल जाएगा
ये अँधेरा सर्द सा ढल जाएगा
रोशनी ना ये छुपाई जाएगी |
हम समंदर में पले हैं इस तरह
और थपेड़े भी सहे हैं बेतरह 
ये निशानी ना दिखाई जाएगी | 




Friday 4 November 2011

चेहरे

कैसे पहचाना जाए
कि जिस पर जमी हैं  अनगिनत परतें
उन चेहरों में असली कौन है ?
इन दिनों सभी के पास
पूर्ण प्रशिक्षित चेहरों की भरमार है
जो तुरंत पहचान लेते हैं 
देखनेवालों की आँखों का रंग 
और उसी में रंग जाते हैं |
ये खींच ले जाते हैं 
एक ऐसी दुनिया में 
जहाँ फरेब का जादू डाल देता है 
धीरे से सम्मोहन का जाल  
और शुरू हो जाता है
जादूगरी का खेल
फिर तो लोग वही देखते हैं 
जो चेहरे दिखाते हैं  
मायावी चेहरों की माया से
हम रोज चोट खाते हैं
पर कमाल की बात यह है
 कि सभी को बेपरत चेहरों से
परतों वाले चेहरे ज्यादा लुभाते हैं |