Sunday 13 August 2017

सहानुभूति की गंगा से धरती के पाप नहीं धुलेंगे

हादसों के शहर में मौतें  कोई नई बात नहीं , ऐसा पहली बार नहीं हुआ है न ये आखिरी मौत है | अपने आस - पास दिन - रात हम यही तो देख रहे हैं कहीं पाँच साल की बच्ची से बलात्कार कर उसके गुप्तांगों में पेप्सी की बोतल घुसेड़ दी जाती है , कभी बहत्तर साल की नन के साथ बलात्कार होता है , कभी चार वर्ष की बच्ची का बस ड्राइवर उसे अपनी हवस का शिकार बनाता है , कभी स्त्री के साथ बलात्कार कर उसके शरीर में पत्थर भर दिए जाते हैं तो कभी बलात्कार के बाद उसके शरीर में लोहे की  रॉड घुसेड़ दी जाती है और  हाथ डालकर उसकी आँतों को खींचकर बाहर निकाल लिया जाता है | कभी दरिन्दे दिल्ली की गलियों में बच्चों का माँस खाते हैं कभी बीरभूम कभी , कामदुनी  कभी रानाघाट , कभी पार्क स्ट्रीट , कभी सन्देश खाली , कभी बुलंदशहर में बेटियों की इज्ज़त लूटी जाती है | हमारे देश में 25 दिन की बच्ची से लेकर 90 वर्ष की वृद्धा तक को हवस का शिकार बनाया जाता है , कोई महफ़ूज़ नहीं है | हमारा बेटा भी उतने ही खतरे में है जितने  खतरे में हमारी बेटियाँ हैं | हम अपने बच्चों को उनके हिस्से का खुला आकाश नहीं दे पाते | नैतिकता कोठे पर बैठ गई है और संसद किन्नरों की ख्वाबगाह बन गई है |  हमें अपनी रगीनियों से फुर्सत नहीं कि हम ज़रा नज़र उठाकर अपने आस - पास देख सकें कि वहाँ आखिर हो क्या रहा है |
                                    हस्पतालों की बेपरवाही  कोई नई बात नहीं , पिछले साल बंगाल में भी ऐसा ही हुआ था हर जगह ऐसा ही होता रहा है  , 1992 में जब माँ को पथरी के आपरेशन के लिए चित्तरंजन हॉस्पिटल में भरती किया तो इस दुनिया की सच्चाई सामने आई  , कभी अलग से इसपर लिखूंगी |  पी .जी. हॉस्पिटल , नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज , कलकत्ता मेडिकल  कॉलेज सब में एक जैसी स्थिति थी , है | जिनकी चिकित्सा निजी अस्पताओं में होती है वही सुरक्षित  नहीं तो सरकारी हस्पतालों  का क्या कहा जाय | बंधुगण ! हमारे यहाँ राजनीतिक पार्टियां प्रतिपक्ष में जब होती है तो उनकी मानवता बाढ़ की नदी की तरह उमड़ने लगती है पर सत्ता में आते ही उन्हें सांप सूंघ जाता है | हमारी लड़ाई मोदी , योगी , राहुल , मुलायम , अखिलेश , से नहीं उस सिस्टम से है जिसने हमारा जीना हराम कर रखा है | पहले उन साँपों के फन कुचलिये जिन्हें आपने अपनी आस्तीनों में पाल रखा है , हमारी लड़ाई अपने उस लोभ से है जो थोड़े से व्यक्तिगत मुनाफे के लिए हमें दूसरों की ज़िन्दगियों से खेलने को प्रेरित करती है और हमें  नकली दवाइयों की सप्लाई कर , खाने - पीने की चीजों में ज़हर मिलाकर , नशीले पदार्थ बेचकर , बच्चो को  , माँओं को , बहनों को , देश को  बेचकर स्वार्थपूर्ति करने को उकसाती है | आप गोरखपुर के हादसे पर कवितायें लिखें इससे ज्यादा ज़रूरी है कि अपने आस - पास के सरकारी हस्पताकी खोज - खबर लें , वहाँ की व्यवस्था की खबर रखें और कहीं कमी नज़र आये तो सम्बंधित अधिकारियों पर सही समय पर सही कदम उठाने का दबाव डालें और सामर्थ्य भर मदद स्वयं भी करें | और इतना भी न कर सकें तो हिस्टीरिया के मरीज की तरह चीखें नहीं किसी अँधेरे कोने में मुंह छुपाकर बैठ जाएँ | मित्रों भागीरथ बनो झूठी सहानुभूति की नहीं , बन पड़े तो मानवता की गंगा को पृथ्वी पर उतार कर लाओ |