एक दिन उग आया वह मेरे भीतर
अपनी छतनार डालियों के साथ
नेह के नीर ने सींचा उसे
ममता की माटी ने पोषित किया
नर्म धूप ने स्निग्ध किया
शीतल हवा ने चैतन्य |
वात्सल्य भरी आँखें निहारती रहीं
इस तरह वह फैला , फूला और फला
कामना के कोमल किसलयों
संवेदना की रस भरी मंजरियों
और विश्वास के फलों से सजा |
उसकी छाया में
जीवन का हर ताप हिमखंड बना
और पीड़ा चन्दन
उसके फूलों में हँसता है वसंत
और पत्तों में सावन
आकाश जब उसके माथे को चूमता है
भोर लगाती है लाल टीका ,
उसकी जड़ों को जब पृथ्वी गुदगुदाती है
वह वृक्ष हँसता है
हँसता है जीवन उसके साथ
जीवन की मधुरिमा संगीत बनकर
कोकिल के स्वरों में गूँजती है
मेरे भीतर का पातझड़ बन जाता है मधुमास
वह वृक्ष हँसता है |