जब भी उठते हैं हाथ
मुट्ठियाँ बाँधे लहराते हैं
इतिहास बदलता है
राज पथ सिकुड़ने लगता है
छोटे रास्ते चौड़े हो जाते हैं
अनगिनत अँधेरी रातों के बाद
फूटती है प्राची से
एक अरुणाभा
आकाश में गूँजती स्वर लहरियाँ
सुनती है संसद
सफेदपोशों का काला चेहरा
सामने आता है
जनतंत्र के पुनर्जन्म पर
मुस्कुराता है देश
उठे हुए हाथों में
बड़ी ताकत होती है
ये छीन लेते हैं
स्वर्ग में बैठे देवताओं का ताज
उठा लेते हैं उनकी थाली से
अपने हक़ की रोटियाँ
निकाल लेते हैं
पानी होते खून से
अपना लोहा |