Monday 29 August 2011

उठे हुए हाथ



जब भी उठते हैं हाथ
मुट्ठियाँ बाँधे लहराते हैं
इतिहास बदलता है
राज पथ सिकुड़ने लगता है
छोटे रास्ते चौड़े हो जाते हैं
अनगिनत अँधेरी रातों के बाद
फूटती है प्राची से
एक अरुणाभा
आकाश में गूँजती स्वर लहरियाँ
सुनती है संसद
सफेदपोशों का काला चेहरा
सामने आता है
जनतंत्र के पुनर्जन्म पर
मुस्कुराता है देश
उठे हुए हाथों  में
बड़ी ताकत होती है 
ये छीन लेते हैं
स्वर्ग में बैठे देवताओं का ताज
उठा लेते हैं उनकी थाली से
अपने हक़ की रोटियाँ
निकाल लेते हैं
पानी होते खून से
अपना लोहा |

Wednesday 3 August 2011

पैसों का पुल

हर यात्रा शुरू होती है
इससे गुज़रने के बाद ही
चाहे वह पेट से रोटी तक की यात्रा हो
या आँखों से सपनों की
प्यास से पानी की
पलकों से नींद की
दर्द से सुकून की
कलम से शब्द की
मन से भावना की
देह से पसीने की
फूल से खुशबू की
बीज से अंकुर की
जीवन से मृत्यु की |
पैसों का पुल
पहुँचा देता है उन रास्तों पर भी
जिनका कोई छोर नहीं होता
परन्तु मृत्यु से जीवन की यात्रा में
काम नहीं आता
पड़ा रहता है परित्यक्त
पैसों का पुल |