Sunday 27 February 2011

क्या -क्या बेचोगे ?
माटी बेची घाटी बेची
शर्मो -हया से दूर
हुजूर क्या -क्या बेचोगे ?
गांधीजी की टोपी बेची 
गोकुल बेचा, गोपी बेची  
वृन्दाबन के कुंज बिके  सब  
कान्हा की बाँसुरिया बेची
देश बिक गया ,वेश बिक गया
अपनी हर पहचान बिक गयी
चौराहे पर खड़े चोर ने
खुद ही अपनी जान बेच दी
बैसाखी को ढूँढ  रहा जो
उसने अपनी टांग बेच दी
उल्लू बन बैठे हो तुम जो
तुमने अपनी आँख बेच दी
दीन -धरम ईमान बेचकर
टुकड़ों पर पलता है अब जो
कहते हैं उन नेताओं ने
अपना हिन्दुस्तान बेचकर
खोला है अपना सब खाता
खतरों में हम घिरे खड़े हैं
और तुमने तलवार बेच दी
साँसें नहीं जियें हम कैसे
पानी नहीं पियें हम कैसे
प्यासे तड़प रहे हैं हम
तुमने गंगा की धार बेच दी
नोट -वोट की खातिर तुमने
भारत का अभिमान बेचकर
क्या पाया ये तुम ही जानो
हमें सिर्फ इतना बतला दो
माँ की अस्मत को भी बेचा
हुए नशे में चूर
हुजूर क्या -क्या बेचोगे ?

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