भूख
हम आदमखोर आदमी
खा सकते हैं कुछ भी
हमारी भूख है
सबसे बड़ी भूख
पेट खाली हो तो
हम चबा जाते हैं
अपना ही समूचा जिस्म
जनतंत्र के तंदूर में
दिन रात पकाते हैं रोटियां
जिसे संविधान के सालन के साथ
खाते हैं चटखारे लेकर
कानून का काला नमक छिड़ककर
बना लेते हैं हर चीज को
थोड़ा और स्वादिष्ट
चौरासी लाख योनियों में
सर्वश्रेस्ठ प्राणी हम
खा सकते हैं किसी को भी
खून का नमकीन स्वाद
बढ़ा देता है हमारा जायका
हम खा सकते हैं
किसी का समूचा सपना
किसी की नींद
किसी की हंसी
भूख चाहे कैसी भी हो
जब जागती है
तो हमारा रूप
हो जाता है कुछ इस तरह
कि हम आदमी तो दूर
जानवर कहलाने के
लायक भी नहीं रहते |
bahut achchhi kavita hai.
ReplyDelete-ritwiz
आपकी रचनाओं ने पूर्व की भांति ही प्रभावित किया । मैंने पहले भी कमेंट दिया था, पता नहीं क्यों पोस्ट नहीं हो पाया । धन्यवाद ।
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