Sunday, 20 February 2011

ऐसा भी होता है

जंगल के चुनाव में 
लड़े आदमी 
कटे ,पिटे ,मरे 
खून बहा माटी में 
उग आये ढेर सारे फूल पौधे 
जिनके नाम 
वनस्पतिशास्त्र की पुस्तकों में नहीं 
राजनीति की सफ़ेद जिल्द वाली 
काली किताब में दर्ज हुए 
नतीजों के दिन जुलूस निकला 
तो आदमी को  छोड़कर
सभी थे उसमें
एक मजबूत पंजे ने
दबोचा दिल्ली की गर्दन
एक कमल कत्ल करवाता रहा
गोधरा  की गलियों में
मेढकी करने लगी हाथी की सवारी
ग्वालों के दक्ष हाथ
करने लगे गणतंत्र का दोहन
जनतंत्र की स्थापना के लिए
चुनाव हुआ जनता में
ताजपोशी हुई भेड़ियों की 
गोटियाँ खेलने वालों ने 
रोटियां खाईं बोटियों के साथ 
अब भेड़िये कर रहे हैं
संविधान में संशोधन
भ्रष्टाचार में लिप्त भांड
कर रहे हैं उनका अनुमोदन
संसद के हर सत्र में
वे जनता को जी भर हँसाते हैं
और एक हम हैं
क़ि हमारा खून  खौलता ही नहीं
हम अपने ही ठन्डे लोहे से
हर वक्त मात खाते हैं |

1 comment:

  1. बेहतरीन कटाक्ष नीलम जी … शाबाश !

    ReplyDelete