संवाद
ये ज़ुबां मुझसे सी नहीं जाती ..
Sunday 20 February 2011
गांठ
गांठ
जोड़ती है
दो विपरीत छोरों को
गांठ लगा देने पर
नहीं बिखरती है माला
गांठ बांध लेने पर नहीं भूलती है कोई बात
पर यही गांठ जब पड़ जाती है
कोमल रिश्तों के बीच
तो दर्द का सबब बन जाती है
ज़िन्दगी बेअदब बन जाती है
1 comment:
R.N. Shahi
27 February 2011 at 08:34
यथार्थवादी लाइनें … बधाई ।
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यथार्थवादी लाइनें … बधाई ।
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