Sunday 20 February 2011


माँ की विरासत
जिस दिन जन्मी मैं
सोहर नहीं गाया गया
न खुशियाँ  मनी
मुबारक देने वालों के शब्द
अफ़सोस में डूबे थे
पर तुमने उस दिन
एक नन्हा दिया जलाकर
कुछ विरासत में किया मेरे नाम
उस लौ ने दीप्त किया मुझे
कुछ संकल्प ,कुछ सपने भी थे
जिन्होंने अँगुलियों को थामकर
चलना सिखाया 
एक शब्दकोष था
जिसमें बेटे -बेटी का अर्थ एक था
एक धरती थी मेरे पैरों के लिए
एक आकाश था मेरी मुट्ठियों के लिए
गहनों की पिटारी में रखे थे
अस्मिता और आत्मविश्वास जैसे शब्द
तुमने कुछ गुनगुनाया मेरे लिए
वो कविता आज भी
खड़ी है मेरे साथ
बैसाखियाँ न तुमने लीं ,न मुझे दिया
अच्छा किया
तुम्हारे शब्द धारदार हथियारों की तरह
हिफ़ाजत करते हैं मेरी
समाज की संहिता के पन्ने
नहीं पढ़े कभी भी
जब विदा किया तो ऐसा रास्ता दिखाया
जिसने भटकाया नहीं
बिना थके हर मंजिल तक पहुँचाया
माँ!
काश ,तुम्हारी ही तरह अपनी बेटियों को
हर माँ सौंपती ऐसी ही थाती
उनकी आँखों में डाल देती
घी में भींगी एक नन्हीं सी बाती |

1 comment:

  1. अच्छी कविता दीदी... बधाई आपको....

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