अन्वित की कविता -अन्वित एक ऐसा होनहार बच्चा है जो ढाई साल की उम्र से ही कविता गुनगुनाने लगा | आज हम सूरज को नहीं ढकेंगे ,आज हम सूरज को चमकने देंगे या फिर उसका ये कहना कि एक दिन चाँद की रोशनी सितारों में खो जाएगी ,गंगा की लहरें किनारों में खो जाएगी और मेरी जिन्दगी गंगा की लहरों में खो जाएगी हमें हतप्रभ कर देता था | कभी -कभी हम डर भी जाते थे कि इतनी छोटी सी उम्र में ऐसी सोच क्या ठीक है ? खैर कवियों के खानदान का बच्चा कुछ भी कह सकता है| प्रतिभा उम्र कि मोहताज नहीं होती |आशा है भविष्य में वह कविता को कोई नया मुकाम देगा |अन्वित अभी मात्र १४ साल की उम्र का है और १४ साल की उम्र में ऐसी परिपक्वता देखकर दंग हो जाना स्वाभाविक है | उसकी कविता की एक बानगी प्रस्तुत है -
सब ठीक है
हम कहते हैं सब ठीक है
भुखमरों की भुखमरी
हमारी सम्पन्नता की
सलाखों के पीछे से
दहाड़ मारकर करती है विलाप
पर हम उसे अनसुना करके
कहते हैं कि
सब ठीक है
रोजाना देखने को मिलता है
अपने अधिकार की दो रोटियों के लिए
जूझते हुए शोषित जनसमूह पर
रक्त पिपासुओं के पाले हुए
रक्त बीजों की रक्तिम लाठियों के बरसने का मंजर
और खाने का वक्त होते ही
टी वी बंद कर बड़े संतोष मिश्रित
शब्दों में हम कहते हैं
सब ठीक है |
अब भी हमें भरोसा है
कि सब ठीक है
जबकि हमारे कानों में
गूँज रहा है ड्रैगन की जकड़न
और तारों की चुभन सहती
अपनी माटी का दर्द भरा रुदन
फिर भी इस तथ्य को
कि हम इस माटी के बने हैं
अपने इम्पोर्टेड जूतों तले कुचलकर
तथा कानों में लेटेस्ट टेक्नोलोजी के
इम्पोर्टेड सेलफोन के हेडफोन
की उपस्थिति के कारण
अनसुनी कर ,हम कहते हैं
सब ठीक है |
रोज मक्खियों के झुण्ड की तरह
आती है देश की सर्वाधिक
मेहनतकश कौम
किसानों की मेहनत का फल
देश की जीवनदायिनी फसलों के
अगणित परिमाणों के
सड़ जाने की ख़बरें
मगर हम पीजा और बर्गर के
विशाल ग्रासों के साथ कहते हैं
सब ठीक है |
सबकुछ ठीक होने की हमारी
धारणा की इम्तेहाँ तो तब हो जाती है
जब कोई बम विस्फोट नामक
मौत की कवायद में मशगूल
मृत्यु के पग
बिलखते अभागे प्राणों को
रौंदकर निकल जाते हैं
तब हम करुणानिधान के
आगे झुककर
संतोषयुक्त चैन की सांस लेते हुए
कि उन बेचारों में हम शामिल नहीं थे
झूठी सांत्वना में
चंद मोमबत्तियां जलाते हैं
फिर झूठी चिंता जताते हुए
किसी स्वार्थी अथवा निकम्मे
आत्मीय -स्वजन के फ्री के फोन से
आये कॉल का उत्तर देते हुए
हम अपने पुराने
संतोषयुक्त लहजे में कहते हैं
कि अरे!सब ठीक है |
अन्वित का सृजन सचमुच उसकी उम्र से शत गुणा परिपक्व है । बधाई ।
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