Tuesday 1 March 2011

और कितने मनु ?

इस्तेमाल के बाद
झोंक देते हैं कभी तंदूर में
कभी विरोध करने पर
बिखरा देते हैं बोटियाँ
भोग्या है आज भी
वह उनके लिए
हर विज्ञापन में
करते हैं वह
उसके जिस्म की नुमाइश
प्रस्तुत की जाती है ऐसे
कि पुरुषों को रिझाना ही
उसके जीवन का लक्ष्य है
आज भी मनुओं कि इच्छा पर
वह जन्म लेती और मरती है
आगे भी उनके वारिस
तय करेंगे उसके जीवन की दिशाएं
यह और बात है
कि शक्ति के लिए दुर्गा
विद्या के लिए सरस्वती
धन के लिए लक्ष्मी
की शरण में आज भी जाते हैं
जरा मनुओं की बेहयाई तो देखिये
कि जिससे भीख मांगकर
हर चीज लाते हैं
उसी की आचार -संहिता बनाते हैं


मेरे बाबूजी
अँधेरे की कोख से निकालकर
सुनहली धूप में मुझे नहलाया
बीहड़ रास्तों पर चलना सिखाया
उनके हिमालय जैसे
कन्धों पर खड़े होकर
कई बार आकाश से
मैंने हाथ मिलाया
धूप ,आंधी -पानी में
खड़े रहे हमेशा मेरे साथ
लड़े हर तूफ़ान से
कवच बनकर हिफ़ाजत की
न सूखे कभी मेरे भीतर की हरियाली
इसलिए रोपा मेरी आँखों में
ढेर सारी दूब
सिखाया बार -बार
कि सच्चाई और साहस से
जीती जा सकती है हर लड़ाई
काँटों में घिरे गुलाब की तरह
खिलकर बिखेरा सौरभ
मेरे आँखों की आभा
होठों की मुस्कुराहट
मुट्ठियों के संकल्प
उनकी अमानत हैं
मेरी कलम ,मेरे शब्द
उनके उपहार हैं
गीता ,रामायण ,वेद से भी पावन
बाबूजी का प्यार है.|


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