Saturday 5 March 2011

आज पुरवाई कहाँ चली ?
बोझा खोल बाबूजी
सटक रहे धान
खड़ा गुमशुम सिवान
आज पुरवाई कहाँ चली ?
खड़ा पुअरोट है
अकेला खलिहान में
ढेंकी की धुन
गूँज उठी है विहान में
अम्मा के ओखल की
बढ़ गई है शान
खड़ा गुमशुम सिवान
आज पुरवाई कहाँ चली ?
आँगन में तुलसी का
छोटा सा पौधा है
मासूम सपनों का
अपने घरौंदा है
रात भी अंजोरिया में
कर आई स्नान
खड़ा गुमशुम सिवान
आज पुरवाई कहाँ चली ?
बच्चों की यादों में
आँखें बरसती हैं
रास्ता निहारती हैं
पल-पल तरसती हैं
नेह की नियामत का
करती हैं दान
खड़ा गुमशुम सिवान
आज पुरवाई कहाँ चली ?

सुनो -सुनो !

हालू बाबा ,घालू बाबा !
बच्चे बन गए चालू बाबा
अंजर -बंजर ,ऊसर -धूसर
में भी लहराती है बाली
पूरब -पच्छिम ,उत्तर- दक्खिन
से फूटे सूरज की लाली
चुगलखोर ये चोर अंजोरिया 
हो गई है ईर्ष्यालु बाबा
कौन बने हरजोत्ता अब तो
घुरहू बनने चला कलक्टर
कत्तु, खरपत्तु के खेतों में भी
अब चलता है ट्रैक्टर
बी .डी .सी .बन गया बहेतुआ
बीडीओ  बन गया कालू बाबा |
चमरौटी में चमक -चांदनी
ठकुराने ठन-ठन गोपाला
बुझी -बुझी है बाम्हन टोली
नाचे गाएँ झूमें  ग्वाला
अहिराने में जश्न हो रहा
खाओ खूब कचालू बाबा |

काट रहे वे चिड़ियों के पर 
पार कर गए सात समंदर
खड़ी मड़ैया झंख मारती
बने हुए हैं मोती के घर
डमरू बजे विलायत में अब
दौड़ पड़े सब भालू बाबा
हालू बाबा,घालू बाबा
बच्चे बन गए चालू बाबा |

No comments:

Post a Comment