Wednesday 2 March 2011

सूरज से संवाद

एक दिन सूरज ने
हंसकर कहा -
जीवन में मैंने भी
बहुत कुछ सहा
आग के दरिया में
तैरता हूँ हर पल
डूबना विश्राम नहीं
सिर्फ एक छलना है
मुझको तो रात- दिन
जलना ही जलना है
देवता बन जाओ तो
ऐसा ही होता है
होठ मुस्कुराते हैं

और मन रोता है
डाल दिया मुझपर क्यों
रोशनी का भार
बेफिक्र बन बैठा
पूरा संसार
क्या कहें दुनिया में
ऐसा ही होता है
फसल कोई काटता है
बीज कोई बोता है|

ना चंदा रोना मत
क्या हुआ
लौटा दी गई
तुम्हारी डोली
सिन्दूर का मान
तुमने रखा
पर वे नहीं रख सके
जो पैसों के भूखे थे
तुम्हारी आँखों की पीड़ा
और दिल पर लगे
गहरे चोट के निशान
नहीं दिखे किसी को
तुम्हारी बेचारगी पर
दिखाई जाने वाली दया
तुम्हें कमजोर बना देगी
चुटकी भर सिन्दूर
इतना महत्वपूर्ण नहीं होता
कि उसके लिए
बरबाद कर दिया जाय 
अपना समूचा जीवन 
तुम जिओ अपने लिए 
अपनी अस्मिता की खातिर 
उठो अपनी पूरी ताकत के साथ 
इससे पहले कि कोई गुप्त कहे 
'अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी '  
या कोई प्रसाद तुम्हें
विश्वास रजत नग पग तल में
पीयूष स्रोत की तरह
बहने का सुझाव दे |

मुझ से यह नहीं होगा
तुम चाहते हो
भाट चारणों की तरह
मैं गाऊं तुम्हारी विरुदावली
और बदले में पाऊँ
राजदरबारी कवि का खिताब
या कोई ऐसी उपाधि
जो रात भर में बनादे
मुझे महाकवि
तुम्हारी तिजोरी में
रख दूं अपनी आत्मा
बटोर लूं ढेर सारे इनाम
तुम्हारी अनुकम्पा से छपी
किताबों का ढेर दिखाकर 
महान रचनाकार
होने का दावा करूँ
पृथ्वीराज !क्षमा करना
मैं चंदवरदाई नहीं 
मेरी कविता के विषय 
मेरे देश के करोड़ों लोग हैं
जिनके सर पर कोई ताज नहीं
न हथेलियों पर रोटी है
न आँखों में नींद
फिर भी लड़ रहे हैं
दूसरों की खातिर
उन्हें भूलकर
मैं तुम्हारी बात करूँ
मुझसे यह नहीं होगा |

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