Tuesday 15 March 2011

अन्वित की एक और कविता -

सर्वेसर्वा !  जवाब दें . . .

सर्वेसर्वा ! जवाब दें
स्वर्ण मुकुटधारी हमारा यह देश
बन गया राह में
लोगों के पद आघातों को
सहता पत्थर
ऐसा हुआ क्योंकर ?
सर्वेसर्वा जवाब दें |
देश की सीमा पर
उसकी सुरक्षा -शपथ के नीचे
अपने लहू से हस्ताक्षर करने वाले
सुपुत्र की माँ को
क्यों कर दिया जाता है बेघर ?
सर्वेसर्वा जवाब दें |
अवर्णनीय गरीबी 
और भुखमरी के 
असंख्य थपेड़े झेलते 
देश के दरिद्रनारायण को 
आपके विनाशकारी आघातों से 
संभलने के अवसर तक 
क्यों नहीं मिलते ?
सर्वेसर्वा जवाब दें |
और यह बात भी निराली है
कि यह मंहगाई डायन जिसने
तंगहाल कर रखा है
जनसाधारण की जेब को
आखिर क्यों करें आप
अर्थनीति रुपी अंकुश से उसपे वार
 वह भी तो आप ही की पाली है !
सर्वेसर्वा जवाब दें |
सर्वेसर्वा !
वे प्रतिष्ठित किये जाते हैं
ऊँचे से ऊँचे पदों पर ,
जो कि अयोग्य हैं मगर
आपकी सेवा में नियुक्त हैं
किन्तु योग्य व्यक्ति की चीखें
नहीं सुनता कोई
क्योंकि वे या तो असहाय 
अथवा आपकी सेवा में
न होने के अभियुक्त हैं |
सर्वेसर्वा ! यह क्या हुआ ?
इनमें से एक भी सवाल का उत्तर
आपको नहीं आता है ?
शायद इन प्रश्नों   का जवाब
स्विस बैंक में खुला हुआ
आप का खाता है |



1 comment:

  1. अभूतपूर्व ! अभी भी विश्वास नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है । बधाई ।

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