हमें शर्म क्यों नहीं आती ?
जिस यूनियन जैक को उतारने के लिए हमारे शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी उसे सीने पर चिपकाकर शान से घूमने वालों पर लानत है । आज गुलामी हिन्दुस्तानियों की रगों में खून की जगह बह रही है ,उन्हें अपना देश ,अपनी भाषा ,अपनी संस्कृति यहाँ तक कि अपनी माँ भी पिछड़ी हुई लगती है । ये गुलामी के प्रतीकों को सर पे उठाये घूमते हैं । इन्हें लगता है कि विदेशी वेशभूषा और तौर तरीके अपनाकर ये अंग्रेज बन जाएँगे पर अफ़सोस कि ये भारतीय मैकाले और कर्ज़न अपना चेहरा नहीं बदल सकते। शायद ये नहीं जानते कि चाहे अपने बाल भले नीले - पीले कर डालें और एक कान में बाली पहन लें या सरकउआ पैंट पर रहेंगे भारतीय ही । कपड़े तो बदल लोगे जनाब पर इस भारतीय चेहरे का क्या करोगे ? काश ऐसी ललक तुम्हारे मन में तिरंगे के लिए होती जो यूनियन जैक के लिए है तो तुम्हारा जीवन धन्य हो जाता ।
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