यूँ सच ने कर दिए हैं कुछ सवाल दोस्तों
घर झूठ के है मच गया बवाल दोस्तों !
गठरी फरेब की है इतनी उन्होंने बाँधी
अंधों के साथ हम भी कहते हैं उनको गाँधी
इतिहास को बदलना फितरत थी जिनकी यारों
वे हो गए हैं बेतरह बेहाल दोस्तों !
गूँगों की जीभ पर भी अब शब्द मचलते हैं
नंगे भी सुबह शाम रोज वस्त्र बदलते हैं
चारो तरफ उगे थे जंगल जो अंधेरों के
कटने पे उनको हो रहा मलाल दोस्तों !
उतरे हैं कुछ मुखौटे चेहरे से खुदाओं के
कोई न रीझता है अब उनकी अदाओं से
मछली नहीं है कोई , खाली है समंदर भी
बैठे लाचार लेके अपना जाल दोस्तों !
घर झूठ के है मच गया बवाल दोस्तों !
अब एक ही है ज़हन में सवाल दोस्तों,
ReplyDeleteये ग़ज़ल पढ़ के हो गया निहाल दोस्तों;
अब कोई ज़हर करता नहीं कोई असर,
आस्तीन में सांप जबसे लिए हैं पाल दोस्तों;
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल दीदी...!!!