Friday 28 October 2011

तुम्हारे नाम

मैंने समूची धरती 
कर दी है तुम्हारे नाम 
नहीं खींच सकता कोई भी 
तुम्हारे पैरों तले की जमीन |
आकाश कर दिया है
तुम्हारी आँखों के नाम
तुम्हारे स्वप्न उन्मुक्त विचर सकें |
हिमालय किया है
तुम्हारे कंधों के नाम
वहन कर सको हर भार !
कंटकित गुलाब है
तुम्हारे होठों के नाम
दर्द में भी मुस्कुरा सको |
नक्षत्रों से भरा नभ मंडल
सौंपा है तुम्हें
 कि लड़ सको अँधेरे से |
सारी नदियाँ , सारे समुद्र
तुम्हारे हिस्से हैं  
जीवन नहीं बनेगा मरुभूमि |
सुनो !
मैंने बाँध दिया है तुम्हारे सीने पर
अपने आशीष का कवच ,
नहीं छू पायेगा  तुम्हें कोई आघात |


1 comment:

  1. दीदी,
    जब आपने कह दिया है तो हमने भी उसे गाँठ बांध लिया है| मजाल है किसी दुर्घटना अथवा अवांछित आपदा की जो आपके भाईयों को छू भी जाए| जब तक आपका आशीष साथ है मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला मुझे मालूम है| और आपका वही आशीष मुझे शक्ति देगा आपके लिए भी ढाल बनने को| सादर एवं साभार अपनी ज्येष्ठा सहोदरी के नाम.. :-))

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