Monday 18 April 2011

याद
जिस दिन
गाँव की डगर छूटी
पाँव बढ़े शहर की
लम्बी सड़क पर
बार - बार थरथराये
होंठ कुछ कहने को फड़के
ट्रकों के बड़े पहियों के बीच
कुचले जाने की सम्भावना ने
मन को बेचैन किया
कुछ सपने थे
जिन्होंने हाथ थामकर
अजनबी राहों पर चलना सिखाया
धुएँ के गुब्बार के बीच
आँखें धुंधलाई
पर बनी रही सपनों की
चमक -चाँदनी
इन्द्र धनुषों के रंग में
रंगीन बना जीवन
अपने को खोकर
बहुत कुछ पाया
पर आज भी पुरानी राहें
जब पुकारतीं हैं प्यार से
बड़े रास्ते पराये लगने लगते हैं
सपनों की चाँदनी , इन्द्र धनुषों के रंग
फीके पड़ जाते हैं
भूलने लगते हैं किताबों के नाम
सिर्फ एक छोटी स्लेट
और कुछ दूधिया अक्षर
याद रह जाते हैं |

1 comment: