मासूम लड़कियों के भ्रूण एक झील में फेंक दिए गए थे जहाँ से बहते हुए गटर के गंदे पानी में तैर रहे थे ,इसे देखने के बाद मेरी आत्मा काँप उठी ,आजतक चैनल पर दिखाए गए इस दृश्य को मैं भुला नहीं पाती , जो माँ संतान की इज्ज़त करना नहीं जानती उसे माँ बनने का कोई हक़ नहीं ऐसा मैं मानती हूँ , प्रगतिशीलता का दावा करने वाला समाज खामोश क्यों है ? क्या हम अपाहिज हैं जो कुछ कर नहीं सकते ? इस तरह की वाहियात हरकतों का मैं पुरजोर विरोध करती हूँ ,और सबके सहयोग की कामना करती हूँ |
बेटियाँ
झील की सतह पर खिला
एक खूबसूरत फूल
कुचलकर , फेंक दिया गया
झील के पानी में
उस फूल से झाँक रहा था
मेरी बेटी का चेहरा
और शायद आपकी बेटी का भी
जो कह रहा था
माँ ! अपने ही रक्त माँस का टुकड़ा
कोई काटकर कैसे फेंक देता है ?
यह सवाल मुझे सोने नहीं देता
मेरी बेटी !
तुम्हारा प्रश्न ,मेरा भी है समाज से
कि आँखों खिला स्वप्निल गुलाब
कैसे फेंक दिया जाता है
किसी गटर या गन्दी नाली में
किसने हक़ दिया है हमें
कि छीन लें हम दूसरों से
उनके जीने का हक़ ?
यकीन मानो गुड़िया
यहाँ हर कोई जी रहा है
सिर्फ अपने लिए
तो तुम्हें भी आना होगा
झीलों , नालियों और गटरों से निकलकर
बंध्या करना होगा उन माँओं की कोख !
जिन्होंने तुम्हें मौत बाँटी है
बिटिया !
जिस समय तुम तोड़ रही होगी
भ्रूण हत्या करने वालों के हाथ
मेरा हाथ भी होगा तुम्हारे साथ |
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