Thursday 23 August 2012

ख़्वाब

एक सुबह ऐसी हो 
कि हर होठों पर  
चमके हँसी तुषार बिंदु की तरह |
हर आँख बन जाये स्नेह का झरना
भावनाओं की उत्ताल तरंगें इस तरह  उठें
कि अंतर्मन उद्वेलित  हो सिन्धु की तरह |
लोग अविश्वास के  कंटीले जंगलों से निकल 
आस्था की सुरम्य घाटियों की सैर करने लगें ,
कोई किसी को न छले |
एक सुबह ऐसी हो
कि मसीहाओं की दुनिया में 
इंसान पूजे जाने लगें ,
सुनहली बालियाँ कर दी जाएँ भूखों के हवाले 
हर प्यासे अधरों पर गंगा की धारा मचलने लगे |
पत्थरों पर उग जाए ढेर सारी हरी दूब 
सूखी नदियाँ रसवंती बनकर
सूरज को अर्घ्य चढ़ाने लगें
वासंती रंग में रंग जाए धरती
नभ गुनगुनाने लगे |
एक रात ऐसी हो
कि चाँदनी अमावस को
मोतियों के नूपुर पहनाने लगे |

No comments:

Post a Comment