एक सुबह ऐसी हो
कि हर होठों पर
चमके हँसी तुषार बिंदु की तरह |
हर आँख बन जाये स्नेह का झरना
भावनाओं की उत्ताल तरंगें इस तरह उठें
कि अंतर्मन उद्वेलित हो सिन्धु की तरह |
लोग अविश्वास के कंटीले जंगलों से निकल
आस्था की सुरम्य घाटियों की सैर करने लगें ,
कोई किसी को न छले |
एक सुबह ऐसी हो
कि मसीहाओं की दुनिया में
इंसान पूजे जाने लगें ,
सुनहली बालियाँ कर दी जाएँ भूखों के हवाले
हर प्यासे अधरों पर गंगा की धारा मचलने लगे |
पत्थरों पर उग जाए ढेर सारी हरी दूब
सूखी नदियाँ रसवंती बनकर
सूरज को अर्घ्य चढ़ाने लगें
वासंती रंग में रंग जाए धरती
नभ गुनगुनाने लगे |
एक रात ऐसी हो
कि चाँदनी अमावस को
मोतियों के नूपुर पहनाने लगे |
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