Monday 29 August 2011

उठे हुए हाथ



जब भी उठते हैं हाथ
मुट्ठियाँ बाँधे लहराते हैं
इतिहास बदलता है
राज पथ सिकुड़ने लगता है
छोटे रास्ते चौड़े हो जाते हैं
अनगिनत अँधेरी रातों के बाद
फूटती है प्राची से
एक अरुणाभा
आकाश में गूँजती स्वर लहरियाँ
सुनती है संसद
सफेदपोशों का काला चेहरा
सामने आता है
जनतंत्र के पुनर्जन्म पर
मुस्कुराता है देश
उठे हुए हाथों  में
बड़ी ताकत होती है 
ये छीन लेते हैं
स्वर्ग में बैठे देवताओं का ताज
उठा लेते हैं उनकी थाली से
अपने हक़ की रोटियाँ
निकाल लेते हैं
पानी होते खून से
अपना लोहा |

1 comment:

  1. उठे हुए हाथों में
    बड़ी ताकत होती है
    ये छीन लेते हैं
    स्वर्ग में बैठे देवताओं का ताज
    उठा लेते हैं उनकी थाली से
    अपने हक़ की रोटियाँ
    निकाल लेते हैं
    पानी होते खून से
    अपना लोहा | behtareen.. bahut badhiya..

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